भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और संबंधित मुद्दों पर सरकार की ख़ामोशी चिंताजनक!
सैयद खालिद कैस
संस्थापक अध्यक्ष
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स
हमारे देश को आज़ाद हुए भले ही 75साल का स्वर्णिम सफ़र गुजर गया हो, सरकार द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव मनाया गया, करोड़ों रुपए खर्च कर वर्ष भर देश भर में आयोजन किए गए। आजादी का अमृत महोत्सव की आड़ में सत्ता और संगठन वालों ने देश प्रेम की भावना में ओत-प्रोत होकर देश भक्ति का जो प्रदर्शन किया उससे कोई अंजान नहीं है। सरकार के तीनों अंग कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका से भिन्न लोकतंत्र का चौथा स्तंभ आजादी का अमृत महोत्सव में ठगा महसूस करता रहा। कारण स्पष्ट था आज़ाद देश में पत्रकारिता पर बढ़ते हमलों के बीच लहू लुहान पत्रकारिता असहाय होती नजर आई। लाख सरकार, न्यायपालिका, संसद द्वारा पत्रकारिता की आजादी, उसकी अधिकारिता पर चिंतन मनन किया हो, लेकिन वास्तव में पिछले 8/10वर्षो में पत्रकारिता पर हुए हमलों की संख्या में बढ़ोतरी इस बात का प्रमाण है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का अस्तित्व खतरे में आ चुका है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ (RSF) द्वारा विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक का 20वाँ संस्करण प्रकाशित किया गया। प्रकाशित सूचकांक के अनुसार 180 देशों में भारत 150वें स्थान पर है।
पत्रकारों के लिये उपलब्ध स्वतंत्रता के स्तर के अनुसार यह सूचकांक देशों और क्षेत्रों को रैंक प्रदान करता है। हालाँकि यह पत्रकारिता की गुणवत्ता का संकेतक नहीं है।
भारत 2022 में 180 देशों में 142वें में से आठ पायदान गिरकर 150वें स्थान पर आ गया है। जबकि भारत 2016 के सूचकांक में 133वें स्थान पर था इसके बाद से उसकी रैंकिंग में लगातार गिरावट आ रही है। जो इस बात का प्रमाण है कि भारत में पत्रकारिता असुरक्षित महसूस की जा रही है। सूचकांक की भारत की रैंकिंग में गिरावट के पीछे का कारण “पत्रकारों के खिलाफ हिंसा” और “राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण मीडिया” में वृद्धि होना है। उक्त सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार भारत की रैंकिंग में गिरावट के अन्य मुख्य कारण सरकार का मीडिया पर दबाव रहा है। मानहानि, राजद्रोह, न्यायालय की अवमानना और सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप लगाते हुए उन्हें “राष्ट्र-विरोधी” करार दिया गया। सूचकांक के अनुसार मीडियाकर्मियों के लिये भारत दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना गया है ।यह बात और है कि सरकार ने इस दावे को सिरे से ख़ारिज किया है।
इस सब के बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत मीडियाकर्मियों के लिये भी दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है। जहां पत्रकारों को पुलिस हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं द्वारा घात लगाकर हमला करने और आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा घातक प्रतिशोध सहित सभी प्रकार की शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है।
गौरतलब हो कि भारतीय संविधान देश का सर्वोच्च कानून है, जो अनुच्छेद 19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो ‘भाषण की स्वतंत्रता आदि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण’ से संबंधित है।प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत संरक्षित है, जिसके अनुसार “सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा।” लेकिन वर्तमान संदर्भ में भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत अधिकार का निरंतर हनन जारी है। आलोचनात्मक टिप्पणी की आड़ में पत्रकारों एवम पत्रकारिता पर हमले निराशाजनक हैं।
पत्रकारिता व पत्रकारों पर बढ़ रहे हमलों की गंभीरता को लेकर सम्पूर्ण भारत में पत्रकार सुरक्षा कानून पारित कराने के लिये आन्दोलनरत् हमारा संगठन प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स चाहता है कि पत्रकारिता का सत्य सुरक्षित हो, पत्रकार सुरक्षित हो उसका परिवार सुरक्षित हो। इसलिये पत्रकार सुरक्षा कानून हमारा अधिकार है। हमारी एकता ही हमारा हथियार है। पत्रकार एकता को कायम रखें