मध्य प्रदेश में असुरक्षित पत्रकारिता के प्रति सरकार की उदासीनता का परिणाम है भ्रष्ट तंत्र का बढ़ता मनोबल

सैयद खालिद कैस

संस्थापक अध्यक्ष

प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट 

भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत प्रेस की आजादी को व्याख्यायित किया गया है. प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत दी गई वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में अंतर्निहित है कि एक व्यक्ति न केवल अपने विचारों के प्रचार का अधिकार रखता है, बल्कि वह चाहे मौखिक रूप से या लिखित रूप से उनको प्रकाशित, प्रसारित तथा परिचालित करने का अधिकार भी रखता है।

लेकिन वर्तमान स्थिति में शिवराज सरकार में बड़े स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़े इतनी मजबूत हो गई हैं कि भ्रष्ट तंत्र निरंकुश होकर पत्रकार समाज के ऊपर हमलावर हो रहा है।जो लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर प्रतिघात से कहीं कम नही है।

ताजा मामला नीमच जिले से है जहां सूचना अधिकार कार्यकर्ता तथा समाचार पत्र स्वामी आशीष बंग माहेश्वरी द्वारा नगर परिषद सरवानिया महाराज में कार्यरत कर्मचारी द्वारा जनकल्याणकारी योजनाओं की आड़ में भ्रष्ट आचरण की शिकायत के बाद उक्त कर्मचारी सहित अन्य द्वारा धमकाने तथा झूठे केस लगाने की आशंका कलेक्टर नीमच को बताई।दुर्भाग्य का विषय है कि प्रशासन द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। नीमच की घटना कोई पहली या आखिरी नही है।प्रदेश भर में ऐसी घटनाओं का होना इस बात का प्रमाण है कि मध्य प्रदेश में पत्रकारिता पर छाए काले बादल शुभ संकेत नही दे रहे हैं।

इस वर्ष के अंत तक मध्य प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होना है। चुनाव की आहट के मद्देनजर छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया भूपेश बघेल ने अपने पिटारे से पत्रकार सुरक्षा कानून का मुद्दा निकाल लिया है घोषणा भी कर दी लेकिन अब तक अमल में नही आना उनकी उदासीनता को उजागर करता है। राजस्थान राज्य में भी मांग उठ रही है कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में राजस्थान में भी पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की घोषणा अपने वचन पत्र में शामिल की थी लेकिन अमल में नही लाने ने साबित कर दिया की केवल घोषणा ही भर थी,यह अलग बात है कि गहलोत सरकार ने पत्रकारों के हित में ऐसे कई काम किए जो इस ज़ख्म पर मरहम का काम कर गए परंतु शिवराज सरकार की खामोशी ने पत्रकार सुरक्षा कानून के प्रति उदासीनता से यह साबित कर दिया है कि इस सरकार को पत्रकारों का दोहन करना बखूबी आता है। मुठ्ठी भर चाटुकारी पत्रकारों को अपने इशारे पर नचाने वाली शिवराज सरकार के दोहरे चरित्र से प्रदेश का पत्रकार चिर परिचित है,लेकिन मुंह खोलकर विरोध का दम नही लगा पा रहा है। यहां एक ओर बात भी प्रमाणित है कि प्रदेश में पत्रकारों के हितों की रक्षा का पाखंड करने वाले मठाधीशों के दोगलेपन के कारण आजादी के 75साल बाद भी मध्य प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू नहीं हो पाया है और न ही भविष्य में उसके लागू होने की कोई संभावना है।

मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार द्वारा पत्रकार सुरक्षा के प्रति उदासीनता चिंताजनक है,लेकिन सरकार की उदासीनता का परिणाम है कि प्रदेश भर में भ्रष्ट आचरण अपना रहे कर्मचारी, अधिकारी अपने काले कारनामों को छिपाने के लिए पत्रकारों पर हमलावर हो रहे हैं। प्रदेश भर में पत्रकार साथी जहां जहां भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे हैं या करते रहे हैं उनको भ्रष्ट तंत्र के निशाने पर आना पड़ रहा हैं। प्रदेश भर में पत्रकारों के खिलाफ हमले,झूठे केस दर्ज होना इसी का उदाहरण है। प्रदेश में शिवराज सरकार की मौजुदगी में कई क्रांतिकारी पत्रकारों को अपनी जान तक गवानी तक पड़ी है। यहां यह विचारणीय विषय है कि आज तक पत्रकार की हत्या करने या कराने वाले को दंड नही मिला है,अधिकतर मामले अदालतों में पड़ी फाइलों में दम तोड़ चुके हैं या धूल खा रहे हैं।

राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) की भारतीय प्रेस स्वतंत्रता रिपोर्ट 2021 बताती है कि देशभर में इस दौरान कम से कम छह पत्रकारों की हत्या हुई, 108 पर हमला हुआ और 13 मीडिया संस्थानों या अखबारों को निशाना बनाया गया

रिपोर्ट बताती है कि जम्मू कश्मीर (25) में पत्रकारों या मीडिया संस्थानों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश (23), मध्य प्रदेश(16), त्रिपुरा (15), दिल्ली (8), बिहार (6), असम (5), हरियाणा और महाराष्ट्र (4-4),गोवा और मणिपुर (3-3), कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल (प्रत्येक में 2 मामले) और आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और केरल (प्रत्येक में 1 मामला) का नंबर आता है। रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के बाद मध्यप्रदेश ही सबसे बड़ा प्रदेश है जो पत्रकारों के लिए असुरक्षित प्रदेश है।जहां पर पत्रकारों पर हमले की घटनाएं होना आम बात है।

भारत सरकार गृह मंत्रालय द्वारा पत्रकार हित में बनाई गई 2017 की गाइडलाइन पर अमल नहीं होना भी इस बात का प्रमाण है कि मध्य प्रदेश सरकार लाख पत्रकारों के हितों के खोखले दावे करे लेकिन वास्तविक की धरा पर मध्य प्रदेश में पत्रकार असुरक्षा के माहौल में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कर रहे हैं ,सरकार की उदासीनता का परिणाम है कि भ्रष्ट तंत्र बेलगाम हो गया है।