लोकतांत्रिक गणराज्य के सुचारु रूप से चलते रहने के लिए स्वतंत्र प्रेस आवश्यक

सैयद खालिद कैस की कलम से

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है वह स्तंभ जो कार्यपालिका ,व्यवस्थापिका तथा न्यायपालिका के बाद स्वस्थ लोकतंत्र की रक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करता है। मीडिया को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है।देश की आजादी के पूर्व से लेकर वर्तमान काल तक पत्रकारिता का समाज और देश के उत्थान में महत्वपूर्ण स्थान रहा है लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि आजादी के 75 साल बाद भी लोकतंत्र के इस मजबूत स्तंभ के सिपाही, भारतीय पत्रकारों को सरकार की और से सुरक्षा, संरक्षण और सम्मान की निश्चित व्यवस्था नहीं है। लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्वपूर्ण है।

राज्य सरकारों व केंद्र सरकार से पत्रकारों के जीवन स्तर में सुधार के लिए उनके रोजगार की गारंटी, सुरक्षा हेतु जीवन-स्थास्थ्य बीमा, आवास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए हर संभव सहायता सुलभ नही कराने का ही कारण है कि भारत का पत्रकार भययुक्त जीवन व्यतीत कर रहा है।

भारतीय पत्रकारिता आज जिस स्थिति से गुजर रही है उसे भारतीय मीडिया का आपातकाल कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यही कारण है कि भारतीय पत्रकारिता की अस्मिता पर हो रहे हमलों को देखते हुए गत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पत्रकारिता की आजादी संविधान में दिए गए बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का मूल आधार है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि भारत की स्वतंत्रता उस समय तक ही सुरक्षित है, जब तक सत्ता के सामने पत्रकार किसी बदले की कार्रवाई का भय माने बिना अपनी बात कह सकता है।

एक स्वतंत्र प्रेस हमारे लोकतांत्रिक समाजों में एक आवश्यक भूमिका निभाता है जैसे- सरकारों को जवाबदेह ठहराना, भ्रष्टाचार, अन्याय और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करना, समाजों को सूचित करना और उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों और नीतियों में शामिल होना । वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स दुनिया भर में प्रेस की आजादी की काफी निराशाजनक तस्वीर पेश करता है। सरकारी धमकी, सेंसरशिप और पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स के उत्पीड़न के बढ़ते रूपों से हमारे लोकतंत्रों की प्रकृति और लचीलेपन को कम करने का खतरा है। हम आने वाले समय में इस मुद्दे से से कैसे निपटेंगे, यह निर्णायक होगा।

वर्तमान समय में हमें मीडिया की स्वतंत्रता पर खतरा मंडराता दिख रहा है जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए, क्योंकि हम 21वी सदी में जी रहे हैं और एक लोकतांत्रिक देश में मीडिया को अपनी शक्तियों के उपयोग की पूरी स्वतंत्रता होती है। कोई भी समाज, सरकार, वर्ग, संस्था, समूह व्यक्ति मीडिया की उपेक्षा कर आगे नहीं बढ़ सकता है। आज के जीवन में मीडिया आम जनमानस के जीवन की एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गया है।

भारतीय पत्रकारिता के लिए यह खतरनाक समय है। अपने वैश्विक समकक्षों की तरह, भारतीय पत्रकार कई व्यावसायिक खतरों का सामना कर रहे हैं, वह चुनौतीपूर्ण कानूनी चुनौतियों से जूझ रहे हैं और यहां तक कि सार्वजनिक पटल में जानकारी लाने के लिए अपने जीवन को जोखिम में डाल रहे हैं। पत्रकारों को धमकाने, गाली देने, धमकाने और मारने की संस्कृति अब कई अन्य देशों की तरह भारत में भी एक वास्तविकता है।जैसे-जैसे स्वतंत्र रूप से और बिना किसी डर के काम करने की जगह कम होती जा रही है, इस परेशान करने वाली स्थिति पर चिंतन करने की आवश्यकता है। हमारे लिए उन कई कारकों पर विचार करना अत्यावश्यक है जिन्होंने ऐसे हालात पैदा किए हैं जो लोकतंत्र में महत्वपूर्ण काम करने को खतरनाक बनाते हैं। मौजूदा माहौल को बनाने के लिए जिम्मेदार ताकतों को बाहर करने की तत्काल आवश्यकता है। पूरे भारत में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों ने न केवल व्यक्तियों पर बल्कि एक पेशे के रूप में पत्रकारिता पर भी असर डाला है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में कई पत्रकारों की हत्या इस बात की याद दिलाती है कि जो लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी पर आपत्ति जताते हैं – खासकर जब इसमें उदारवादी विचार शामिल हों – वे उन आवाज़ों को दबाने के लिए किसी भी हद तक नहीं रुकेंगे।

भारतीय पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर चिंता व्यक्त करते हुए वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स ने एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में कहा गया था है कि अपना काम ठीक से करने की कोशिश कर रहे पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है। सरकार की “आलोचना करने की हिम्मत” करने वाले पत्रकारों के खिलाफ “बेहद हिंसक सोशल मीडिया नफरत अभियान” के लिए भारत की आलोचना दुनिया भर में हुई।

लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा था कि , ‘प्रेस राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है और इस प्रकार लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है। एक क्रियाशील और स्वस्थ लोकतंत्र को पत्रकारिता के विकास को एक ऐसी संस्था के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सत्ता से कठिन सवाल पूछ सके या जैसा कि यह आमतौर पर जाना जाता है, सत्ता के सामने सच बोलो.’वे आगे बोले, ‘जब प्रेस को ऐसा करने से रोका जाता है तो किसी भी लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है. अगर किसी देश को लोकतांत्रिक बने रहना है तो प्रेस को स्वतंत्र रहना चाहिए।

हमारे संविधान में प्रत्येक भारतीय को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। यही कारण है कि भारतीय मीडिया अपने अधिकार क्षेत्र में सशक्त और उत्तरदायी मीडिया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से अब तक भारतीय मीडिया ने भारत निर्माण में महत्वपूर्ण व निष्पक्ष भूमिका निभाई है। मगर जब से बाजारवाद का उदय हुआ तब से भारतीय पत्रकारिता में काफी उतर-चढ़ाव देखने में आए हैं। यहां तक कि भारतीय पत्रकारिता की अस्मिता पर भी सवाल उठे। ये सवाल उसकी नैतिकता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर हावी होते रहे हैं। इसके बावजूद निष्पक्ष पत्रकारिता पर सरकारी हस्तक्षेप भी चिंता का विषय है। सरकार के लगातार मीडिया पर अघोषित नियंत्रण का ही परिणाम है कि देश में पत्रकारिता पर हमले पर न्यायपालिका तक को चिंता जाहिर करना पड़ रही है। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि ‘किसी लोकतांत्रिक गणराज्य के सुचारु रूप से चलते रहने के लिए स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है। लोकतांत्रिक समाज में उसकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह राज्य (देश) के कामकाज पर रोशनी डालती है।