कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार, 70% रिपोर्टर/कैमरा मैन, युद्ध और हिंसा की खबर कवर करने के दौरान मारे जाते हैं। साहसिक कार्य के दौरान हुयी हिंसा के शिकार ज़यादातर पत्रकार किसी एक अख़बार या चैनल्स के नहीं होते हैं। कभी ‘स्ट्रिंगर’ तो कभी छोटे समूह के लिए काम करने वाले पत्रकारों की मौत के बाद उनके परिवार की सामाजिक सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन जाती है। अपने देश में भी समय-समय पर पत्रकारों के उत्पीड़न की ख़बरें आती रहती हैं, कई बार घटना की सत्यता आरोप-प्रत्यारोप में दब जाती है।

पत्रकार की नौकरी जहाँ असुरक्षा की भावना से घिरी रहती है वहीँ पूरी दुनिया के स्तर पर राजनीतिक और संवेदनशील मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। रिपोर्टिंग के दौरान मारे जाने के साथ साथ, सोशल मीडिया पर उनको गाली और धमकी आम होती जा रही है। महिला पत्रकारों का काम और कठिन हो रहा है। उनके साथ सोशल मीडिया पर गाली और चरित्र हनन की घटनाएं बढ़ रही हैं। पत्रकारिता के प्रमुख सिद्धांतों का पालन, जिसमें निष्पक्षता और सत्य उजागर करना प्रमुख सिद्धांत में से है, चुनौती बनता जा रहा है। ईमानदार पत्रकारिता, इस बदले समय में काफी चुनौतीपूर्ण लग रही है। ये भी सच है कि पत्रकारों में भी एक वर्ग, अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए ख़बरों और अपने रसूख का इस्तेमाल करता है और जनता को गुमराह करता है।

क्या पत्रकारों की सुरक्षा और उनके अपने अधिकार की आवाज सुनी जाएगी? क्या महिला पत्रकारों को निर्भीक होकर अपना काम करने दिया जायेगा? अपहरण, हत्या, हिंसा का जोखिम लेकर दुनिया भर के पत्रकार तो ख़बरें हमारे बीच लाते हैं लेकिन उनकी खबर कौन लेगा?
पत्रकार भाइयों व् बहनों की सुरक्षा के लिये अब संपूर्ण भारत में प्रेस कौंसिल ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने ये जिम्मेदारी उठाने का ये वचन ले लिया है। सभी से निवेदन है कि प्रेस कौंसिल ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट से जुड़कर हमारे पत्रकार भाइयों व् बहनों की सुरक्षा के लिये एक हो जाएं व् एक बुलंद आवाज़ के साथ पत्रकार सुरक्षा विधेयक संसद में पास कराएं।

सैयद ख़ालिद कैस
अध्यक्ष प्रेस कौंसिल ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट
8770806210-900921754

http://www.pcwj.in