भोपाल। गत दिनों एक पत्रकार की गिरफ्तारी को लेकर देश भर में राजनीति चरम पर थी और इसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर हमला तो किसी ने आपातकाल की याद बताया।मुम्बई से देश की राजधानी दिल्ली तक मचे कोहराम को सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त पत्रकार को जमानत देकर ठंडा किया। मगर दूसरी और पत्रकारों की हत्या,हत्या के प्रयास तथा धमकी के मामले आये दिन उजागर होने पर समाज की खामोशी चिंतनीय है। अगर देखा जाए तो आज देश का पत्रकार अपने आपको अब पूरी तरह से असहाय और असुरक्षित महसूस कर रहा है।पत्रकार यदि भ्रष्टाचार उजागर करे तो अपराधी और माफिया के निशाने पर आता है और यदि सरकार की अनियमितता उजागर करे तो सरकार ,जनप्रतिनिधि दुश्मन बन जाते हैं। और नतीजा यह निकलता है कि अंततःपत्रकार को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है।
पत्रकारिता जगत के लिए बुधवार का दिन फिर एक बार काला अध्याय लिख गया । फिर एक और पत्रकार द्वारा भ्रष्टाचार उजागर करने के बदले में मौत नसीब हुई। यह पहली घटना नही है,वर्ष 2004 से लेकर 2020 तक लगभग 66 पत्रकारों ने अपनी जान गवाईं। और ख़ास बात यह है कि इन 66 पत्रकारों में से 46 पत्रकारों की हत्या हुई ।

गौरतलब हो कि असम में बुधवार को एक वाहन के टक्कर मारने से बुरी तरह घायल हुए स्थानीय न्यूज चैनल के पत्रकार पराग भुइयां की बृहस्पतिवार की सुबह मौत हो गई। पुलिस ने इसे सड़क हादसा बताया है, लेकिन पत्रकार के नियोक्ताओं ने आरोप लगाया है कि पत्रकार की सोची समझी साजिश के तहत हत्या की गई है, क्योंकि वह अपने क्षेत्र में बीजेपी नेताओं के भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों को उजागर कर रहे थे।

‘प्रतिदिन टाइम’ चैनल के काकोपोथर के वरिष्ठ संवाददाता पराग भुइयां को बुधवार रात एक वाहन ने उनके घर के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 15 पर टक्कर मार दी थी। जिसके बाद पराग भुइयां को गंभीर हालत में डिब्रूगढ़ के एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था, जहां बृहस्पतिवार सुबह उनकी मौत हो गई। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज से वाहन की पहचान कर उसके चालक और एक अन्य व्यक्ति को भी गिरफ्तार करने का दावा किया है।

मालुम हो कि दिवंगत पत्रकार पराग भुइयां सीएम सर्बानंद सोनोवाल के करीबी बीजेपी नेता द्वारा एक सब-इंस्पेक्टर को थप्पड़ मारकर एक आरोपी को काकोपोथर थाने से बलपूर्वक छुड़ा कर ले जाने की घटना को उजागर कर रहे थे। दिवंगत पराग भुइयां जिस चैनल में काम करते थे, उसके प्रधान संपादक नितुमोनी सैकिया ने एक बयान जारी कर कहा है कि ‘‘हमें संदेह है कि पत्रकार की हत्या की गई, क्योंकि वह काकोपोथार के आसपास अवैध गतिविधियों और भ्रष्टाचार को उजागर करने वाली रिपोर्टिंग की एक श्रृंखला चला रहे थे, जिसके लिए उन्हें धमकी मिली थी।’’ सैकिया ने आगे कहा, ‘‘हम ‘प्रतिदिन टाइम’ में इसे एक संदिग्ध सुनियोजित हत्या के तौर पर देखते हैं और पूरी घटना की विस्तृत जांच और भुइयां के परिवार और ‘प्रतिदिन टाइम’ को न्याय की मांग करते हैं।’’

53 वर्षीय पत्रकार असम गण परिषद के नेता जगदीश भुइयां के छोटे भाई और तिनसुकिया प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष थे। जगदीश पहले भाजपा में थे, लेकिन सीएए को लेकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी और फिलहाल वह असम जातीय परिषद (एजेपी) के समन्वयक हैं।
पत्रकार पराग भुइयां की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के इस मामले को लेकर असम सरकार ने गुरुवार को सीआईडी जांच के आदेश दे दिए हैं। असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि पराग भुयान ने पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और उनकी मृत्यु समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। इस मामले में पुलिस ने पराग भुइयां को टक्कर मारने वाले वाहन को जब्त करते हुए ड्राइवर जेम्स मुरहा और हेल्पर बाबा बोरदोलोई को काकोपाथर के बॉर्डर से गिरफ्तार कर लिया है।

पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण के लिए प्रतिबद्ध अखिल भारतीय पत्रकार संगठन “प्रेस क्लब ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ” के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद ख़ालिद क़ैस ने दिवंगत पत्रकार पराग भुयान को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पत्रकारों पर हो रहे हमलों सहित हत्याओं को चिंता का विषय बताते हुए केंद्र सरकार से शीघ्र पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने पर बल दिया।