वर्तमान संदर्भ में पत्रकारिता की स्वतंत्रता और हम
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निबंध के शीर्षक में यह जो हम है यह महत्वपूर्ण है। यह दो वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है या तो यह पत्रकारों का अपने लिए विचार हो सकता है या अगर वह पाठक हो तो पत्रकारों के रिपोर्टिंग के संदर्भ में उसके सरोकार से जुड़ा हो सकता है । इसी संदर्भ में इस निबंध में चर्चा करेंगे ।
स्वतंत्रता क्या है? अपने विचारों की स्वतंत्रता को आधार बनाकर ही व्यक्ति पत्रकारिता के साथ जुड़ता है ,पत्रकार बनता है । पत्रकारिता एक तरह का आकर्षण है ,नशा है , एक साहसी कारनामा है। नए युवक-युवतियां जिनमें इनका आकर्षण होता है वही इस पेशे से जुड़ते हैं । पत्रकारिता संस्थानों से सीखकर एवं वरिष्ठ पत्रकारों से अनुभव प्राप्त कर वे धीरे-धीरे भाषाई संयोजन करने ,बात करने के तरीके और विषय ढूंढ कर उस पर अपनी पकड़ तो स्थापित कर लेते हैं, परंतु असली चीज है कि जो दिखता है उसके पीछे के असली सच को ढूंढना ।” न्यूज़ बिटवीन द लाइंस क्या है “इसे खोज निकालना जितना अहम है उससे भी ज्यादा जरूरी है उसे छपवाने की हिम्मत जुटाना । आम आदमी की खबरें रोजी रोटी, नमक तेल आदि की हैं ,रोज छपती है खूब लिखी व छापी जाती हैं ,परंतु असल खबर वह होती है जो मानवीय एवं सामाजिक सरोकारों के एक बड़े वर्ग को प्रभावित कर रही हो ,जो लोकहित पर कब्जा कर बैठे सत्ताधारी की हो, जो जनहित को रोक रहा हो या दूषित कर रहा हो। ऐसे लोगों के पास बल होता है। हर तरह का बल, जन ,धन,बाहुबल ,और सत्ता का बल । इनसे पत्रकार को लड़ना है । वह उनकी छुपी हुई बात जनता को प्रस्तुत करता है । उसने अपना अन्वेषण हर तरह का जोखिम लेकर किया है और उसे अब जनता को परोसने की बारी है तथा उन तक भी पहुंचाना है ,जो इस धूर्तता के खिलाफ कुछ करने में समर्थ हैं ।वह इस अखाड़े में अकेला है और मेटाडोर की तरह सांड को ललकार रहा है ।
पत्रकार की स्वतंत्रता के और भी अनेक शत्रु हैं ,इसमें बाजारवाद सबसे बड़ा है। बाजार की चकाचौंध जरूरतें पैदा करती है । हर चीज खरीदने का मन पत्रकार का भी होता है और उसके परिवार का भी । मौजूदा अर्थव्यवस्था में अखबार और चैनल केवल गिने-चुने लोगों को छोड़कर बाकी को उतना वेतन नहीं देते कि ये सारी जरूरतें पूरी हो । उन्होंने यह बात मान रखी है की पत्रकार खबर और सच बेच कर अपने शौक पूरे कर लेगा। कमजोर मन:स्थिति का पत्रकार यहां गच्चा खा सकता है । दृढ़प्रतिज्ञ व आत्मविश्वास से भरा पत्रकार ही इसे नकार सकता है। कुछ पत्रकारों की जरूरतें खुद की बनाई हुई हो सकती हैं। शराब ,शबाब और कबाब के शौक पत्रकार को या तो नैतिक रुप से कमजोर करते हैं या सत्य को मुखरित करने से रोक सकते हैं। यह पत्रकार की स्वतंत्रता में एक सांकल की तरह है ।
पत्रकार की कोई कैडर सेवा नहीं है पत्रकारिता महाविद्यालय से उत्तीर्ण हुए पत्रकारों को नौकरियां भले ही मिल जाएं परंतु समाचार जगत का कोई कैडर वह नहीं बनते। वे अपने समझौतों के आधार पर समाचार पत्रों में काम करने की अनुकूलता बनाकर रखते हैं । जब उनके तालमेल बिगड़ते हैं तो 30 साल पुराने पत्रकार को बाहर निकालने में भी अखबार का मैनेजमेंट दो पल नहीं लगाता। इस समय न बीमा है न पेंशन सब कुछ पत्रकार को खुद ही जुटाना है । इस परजीवी विवशता स्वरूप के कारण भी पत्रकारिता की स्वतंत्रता बाधित होती है।
अगर फर्म बड़ी हो और प्रगति कर जाए तो उसके कर्मचारी उसकी तरक्की का लाभ पाते हैं , परन्तु यदि समाचार पत्र तरक्की कर जाए तो उसका लाभ पत्रकार को नहीं होता । प्रबंधन पत्रकार पर एक उपकार करने की तरह उससे पेश आता है । ज्यादातर पत्रकार अखबार मैनेजमेंट की शर्तों पर ही काम करते हैं ,अपनी शर्तों पर पत्रकारिता में काम करने वाले इक्का-दुक्का ही होते हैं। समाचार का प्रबंधन किस राजनीतिक समूह से जुड़ा है और किन शक्तियों द्वारा संचालित है इस मिजाज का भी बहुत प्रभाव समाचारों और टिप्पणियों पर पड़ता है । अलगाववादी व वामपंथी हर पल आलोचना को प्राथमिकता देते हैं वह रचनात्मकता को हतोत्साहित करते हैं ।चौका देने वाली सस्ती व फूहड़ खबरों को भरपूर जगह देकर पैसे कमाने वाले अखबारों की इस नीति से पत्रकार की निष्पक्षता प्रभावित होती है। फिर वह समाचार नहीं छपता जो उसने मेहनत व तार्किकता के साथ तैयार किया होता है ।
कई बार चैनल व अखबारों के सीईओ या डेस्क प्रभारी पत्रकार की मेहनत का सारा श्रेय खुद ले लेते हैं और तैयार की गई न्यूज़ को अपनी तरह से संपादित कर लेते हैं । अपनी तरह अपने नाम से छपवाना चैनल में दे देने और सारा क्रेडिट खुद ले लेने से अधीनस्थ पत्रकार अगली बार उन्हीं के अनुकूल लिखने लगता है।
जनता में चैनल या अखबार की छवि कैसी है और अन्य संवाददाताओं की प्रस्तुतियों से कुल कैसा प्रभाव समाचार पत्र का जनता में बना हुआ है यह भी पत्रकार की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है। एक तरफा समाचार छापने वाले अखबारों और दिखाने वाले चैनलों के समाचारों पर पाठक व दर्शक में पूर्वाग्रह होता है । वह अपनी मान्यताओं के आधार पर सच्चे समाचारों को भी झूठा समझने लगता है। कई बार फ्रीलांसर बहुत सूचनापरक मटेरियल लाते हैं और सोशल मीडिया के वृहद सरकुलेशन से पत्रकार की खबर पहले ही बाजार में आ जाती है तो पत्रकार की अपनी मेहनत को नकल मान लिया जाता है।
पत्रकार इस व्यवस्था का अभिन्न अंग है । भले ही उसका कोई संवैधानिक स्वरूप नहीं परंतु आम लोगों की अपेक्षा रहती है कि उन्हें अखबार और समाचार के चैनल सच दिखाएं ,सूचनापरक दिखाएं, नया दिखाएं ,और जननोन्मुखी दिखाएं। ऐसी शोधपरक सूचनाएं दे जिसके कारण उसका आगामी जीवन निष्कंटक और सुविधा पूर्ण बनाए रखने में मदद हो और वे आसपास जो हो रहा है उससे पूरी तरह खबरदार भी रहें।
जनता भोली भी होती है । अखबारों में और चैनलों के माध्यम से बहुत सा झूठ फैलाया गया है, भ्रम फैलाए गए हैं। चंद रुपयों की खातिर अपने दायित्वों से परे पत्रकारों ने एकतरफा समाचार ,झूठे समाचार, तोड़ मरोड़ कर बनाए गए समाचार प्रस्तुत कर अफवाह फैलाई ,आम जीवन संकटमय किया और इनके दूरगामी परिणामों से देशद्रोह, नक्सली घटनाएं और आतंकवादी घटनाओं में जन्म लिया । पत्रकार का अपना राष्ट्रीय एवं नागरिक दायित्व भी है कि वह स्वयं अपने पर रोक लगाएं कि वह आखिर कर क्या रहा है ? यदि मेहनत से उसने समाज में और अखबार में अपना नाम कमा रखा है, पत्रकारिता के क्षेत्र में वह एक स्थापित पत्रकार है तब तो उसकी जिम्मेदारी और भी कई गुना बढ़ जाती है कि वह सत्य लिखे सत्य को छुपाकर ना रखे। पहले सरकारें समाचार पत्रों को ब्लैकमेल करती थी और प्रलोभन देती थीं । अखबारों का कागज का कोटा बांध दिया गया था ताकि सरकार के विरुद्ध छापने वाले अखबार का टेंटुआ दबाया जा सके । सस्ती कीमतों पर प्रेस को जमीनी दे दी जाती थी आज उन जमीनों पर अखबार का कारोबार कम और बाजार ज्यादा खुले हुए दिखाई देते हैं इसका अखबार मालिकों ने जमकर लाभ उठाया है । पत्रकार बंधुओं को रिहायशी कालोनियां बनवा दी गई ,हवाई यात्रा में साथ ले गए ,हर तरह के इंटरटेनमेंट एवं शराब नोशी के इंतजाम भी किए गए। अनेक तरह के उपहार भी लाद दिए । इससे चापलूसों की बन आई ,खूब इनाम इकराम भी बटोरे गए । परंतु स्वाभिमानी पत्रकार एवं समाचार पत्र इन सबसे वंचित रह कर किसी तरह अपना अस्तित्व बचाए रखने रखने का संघर्ष करते रहे । कुछ नए और खोजी पत्रकारों ने बहुत मेहनत की। स्टिंग ऑपरेशन किए ,तहलका मचाया जो सरकारों को नागवार गुजरा । तोपें चल गई । सरकार व उसके नुमाइंदों के काले कारनामे बाहर आए तो सरकारों ने समाचार पत्रों पर सेंसर लगा दिए। पत्रकारों को कई बहानों से गिरफ्तार कर लिया गया । आपातकाल में तो कुछ भी लिखने की सख्त मनाही थी ।
पत्रकार बहुत कुटे और पिटे भी पर इनके बचाव में केवल पत्रकार ही विरोध दर्ज कराते नजर आए । आज भी प्रेस और चैनल संवाददाताओं की तरफदारी में कम ही सामने आते हैं । सरकार अपने विरोध में छापने वाले समाचार पत्रों और प्रोग्राम दिखाने वाले चैनलों को सरकारी विज्ञापन देना बंद कर देती है । चूंकि सरकारी विज्ञापन उनकी आय का प्रमुख जरिया होता है अतः यह लोग अधिक से अधिक पत्रकार की पिटाई की भर्त्सना कर देते हैं । जबकि देखा जा रहा है कि कई बार सच कहने वाले पत्रकार जान से भी हाथ धो बैठते हैं।
इन सब बातों से यह स्थापित होता है कि पत्रकारिता का वातावरण बहुत स्वतंत्र नहीं है ।वह अत्यंत संकीर्ण दायरे में संघर्ष करता हुआ अपने विचारों और सिस्टम से लड़ता हुआ किसी तरह अपने को बचाए हुए है । जो इन संघर्षों के चलते किसी महत्वपूर्ण सत्य को उजागर करने में सफलता पा लेता है और किसी तरह उसके प्रकाशन में सफल हो जाता है वह ख्याति प्राप्त कर लेता है और उसका नाम चलने लगता है । किंतु यह मात्र 1 या 2 प्रतिशत पत्रकारों को ही नसीब होता है । अधिकांश लोग इसी घिसीपीटी व्यवस्था में किसी तरह अपनी जीविका और अपना अस्तित्व कायम किए हुए हैं। पत्रकार बहुत मेहनती और जहीन होते हैं तथा पत्रकारिता का उद्देश्य व उनकी उपलब्धियां मानक दर्जे की हैं परंतु आर्थिक स्वतंत्रता का अभाव, शारीरिक रक्षा का अभाव एवं वैचारिक प्रकाशन पर लगे बंधनों की वजह से वे वास्तविक समाचार प्रकाशन व प्रसारण से वंचित ही हैं । पाठकों तक जो कुछ पहुंचता है वह इस तंत्र द्वारा रचित ,संशोधित, परिवर्तित और सीमित स्वरूप में ही पहुंचता है । अतः वे वह नहीं जान पाते जो उन्हें जनाया जाना है। टेक्नोलॉजी के विस्तार से कुछ साहसी पत्रकारों ने आगे आकर अपने अखबार और अपने चैनलों द्वारा सच समाचारों का प्रकाशन एवम प्रसारण शुरू कर रखा है परंतु इनकी पाठक संख्या एवं दर्शक संख्या सीमित है । पाठक इस पशोपेश में रहता है की इन चैनलों में कुछ अतिरंजित तो नहीं दिखाया या पढ़ाया जा रहा है फिर भी सच बहुत कुछ यहीं से निकल कर आ रहा है । इससे यह धारणा बनती है कि जिस समाचार पत्र पत्रिका के अंतर्गत कोई पत्रकार या संवाददाता काम करता है बहुत कुछ उसकी नीतियों पर ही उसकी स्वतंत्रता टिकी है और पाठक इन नीतियों से प्रभावित समाचार ही पाने को विवश है । यदि अपने सारे सच के साथ स्वतंत्रता पूर्वक पत्रकार जनता के लिए उसे प्रकाशित करना चाहता है तो मजबूरी में उसे खुद ही सारी व्यवस्थाओं के साथ पाठक के रूबरू होना पड़ता है और यह कोई आसान काम नहीं है । पत्रकारिता अब साहस, नैतिकता और जिम्मेदारियों से भरा ऐसा प्रयास है जिसे कोई बहुत साहसी और नैतिक रूप से बहुत सशक्त व्यक्ति ही निभा सकता है। कर सकता है। बाकी बिना रीढ़ के लोग केवल जीविकोपार्जन के लिए इस उद्यम से जुड़े हैं उनसे निष्पक्ष व स्वतंत्र पत्रकारिता की आशा नहीं की जा सकती।
डॉ किशोर अग्रवाल