वर्तमान संदर्भ में पत्रकारिता की स्वतंत्रता और हम

आज का समय बेहद गतिमानता का समय है जहां पल पल में बड़े बड़े और महत्वपूर्ण परिवर्तन यों हो जाते हैं जैसे कि किसी पर्वतीय क्षेत्र में बादलों के फटने से अचानक मूसलाधार वर्षा का महान वेग आ जाये। ऐसे परम गतिमान समय में हमारी सूचना के स्रोतों का स्वरूपतः बदल जाना बहुत ही स्वाभाविक है। जिस घटना की सूचना को हम तक पहुंचने में कभी घंटे या दिन लगते थे, आज उसे हम बेहद तेज रफ्तार इंटरनेट की मदद से घटना घटने के कुछ पलों के भीतर जानने में समर्थ हो गए हैं। इन सुविधाओं की मदद से आज सूचना, समाचार और वैचारिकी दोनों की पहुंच में क्रान्तिकारी परिवर्तन आये हैं। समझने की सुविधा की दृष्टि से इनको हम पत्रकारिता के क्षेत्र के नाम से कहते हैं।

आज जहां तक पत्रकारिता की पहुंच है, दस-बीस साल पहले तक इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इस दौरान पत्रकारिता के स्वरूप में आमूलचूल परिवर्तन आये हैं। पहले जहां पत्रकारिता प्रिंटेमीडिया और टेलीमीडिया तक ही मूलतः सीमित थी, आज यूट्यूब और ट्विटर व फेसबुक जैसे दूसरे सोशलमीडिया के माध्यमों ने पत्रकारिता को मोबाइल फोन व लैपटॉप के जरिये हर साधारण आम आदमी तक को सुलभ कर दिया है।

ऐसे में पत्रकारों की व्यावहारिक चुनौतियां बहुत अधिक बढ़ जाती हैं। अब पहले की तरह सूचना के केवल कुछ गिनती के स्रोत नहीं रह गये हैं। अब सारी सूचनाओं की पड़ताल करने के हजारों स्रोत हर एक को ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध हैं। अब पत्रकारिता बहुत ही जिम्मेदारी का कार्य हो गई है, जिसमें पत्रकारों की विश्वसनीयता पल पल जांची जा सकती है।

फिर व्यावसायिक घरानों ने भी पत्रकारिता के सभी माध्यमों को अपने कब्जे में रखकर उनके मनमाने उपयोग के लिए सब तरह के हथकण्डे अपनाने शुरू कर दिए हैं। कुछ पत्रकार इस काम में उनकी सहायता भी करते दिखते हैं। पर ज्यादातर स्वतंत्र पत्रकार इस व्यवस्था को प्रभुत्वशाली होने से बचाने के लिए लगातार संघर्षरत हैं। यह उन्हीं के ईमानदार प्रयत्न और संघर्ष हैं, जिनकी वजह से आज भी पत्रकारिता की अधिकांश मायनों में विश्वसनीयता बनी हुई है।

यह भी सत्य है कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता और उसकी विश्वसनीयता बनाये रखने में पाठकों और दर्शकों का कम योगदान नहीं है। मूलतः ये उपभोक्ता ही होते हैं जो किसी उत्पाद को उसकी गुणवत्ता और विश्वसनीयता के आधार पर उसे लोकप्रिय और ज्यादा पहुंच वाला बनाते हैं। यदि पाठक दर्शक उत्तम गुणवत्ता के समाचार व वैचारिकी के सम्प्रेषण के बजाय बाजारू, सतही और स्तरहीन सम्प्रेषणों को अधिक प्रश्रय देंगे तो निश्चित ही अच्छी गुणवत्ता की पत्रकारिता मारी जायेगी। इसके फलस्वरूप समाज में समरसता का ह्रास होगा और विकृतियां अपने उत्थान पर होंगी, जिसके कारण मानव सभ्यता व संस्कृति धीरे धीरे पतन की राह पर चलने को मजबूर होने लगेगी। अतः यह पूरे समाज का दायित्व है कि हमारे लोकतंत्र का पत्रकारितारूपी चतुर्थ स्तम्भ पूरी आजादी से, बिना दबाव के और अपनी पूरी सकारात्मक रचनात्मकता के साथ दृढ़तापूर्वक खड़े रहकर लोकतंत्र की रक्षा करने में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान कर पाने में सदैव समर्थ बना रहे।

हमारे पत्रकारिता के संसार में महान पत्रकारों की एक बहुत ही लम्बी व चमकदार श्रृंखला रही है। महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक और अरविंद घोष जैसे महान लोग इस पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े रहे और इस क्षेत्र को अधिकाधिक समुज्ज्वल बनाने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय पत्रकारिता के उज्ज्वल नक्षत्रों गणेश शंकर विद्यार्थी और सुब्रमण्यम भारती से आज कौन परिचित नहीं है। इन्होंने उस समय साहसिक पत्रकारिता के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किए जबकि भारत में अंग्रेजों का दमनकारी शासन था। उनके कालखण्ड में संसाधनों और सुविधाओं का परम अकाल था। फिर भी उनकी पत्रकारिता के साहसिक बिगुल से देश में जनजागरण हुआ था। यद्यपि इसके लिए उन्हें तरह तरह के यातनापूर्ण कष्ट उठाने पड़े। परन्तु उन्होंने पत्रकारिता के पवित्र धर्म के निर्वहन में तत्कालीन शासन-व्यस्था से कभी भी सुविधापूर्ण समझौते नहीं किए।

आज तो फिर भी स्वशासन है। हम लोकतंत्र की व्यवस्था में पिछले पचहत्तर सालों से अपनी आजादी का उत्सव मनाते आ रहे हैं। पत्रकारिता के लिए इससे सुन्दर सुयोग और क्या हो सकता है? किन्तु यदि पत्रकार सत्ता को अधिनायकवादी बनाने में मदद करेगा, यदि वह धनिकों का सेवादार बनकर सुविधोपभोगी जीवन का एकमात्र लक्ष्य रखेगा, तब देश के लोकतंत्र और उसके समाज का पराभव निश्चित है।

इसलिए पत्रकारिता स्वतंत्र रह सके, वर्तमान घटनापूर्ण परिस्थितियों में अपनी सामाजिक सार्थकता बनाये रख सके, इसके लिए पत्रकारों और उनके पाठकों-दर्शकों को अपनी प्राथमिकताएं निश्चित करनी होंगी। उनके सामने देशहित के सिवा कोई अन्य लक्ष्य नहीं हो, इसका हर समय सतर्कता से ध्यान रखना होगा।

पत्रकारिता स्वतंत्र व निर्भय रहेगी तो ही हमारा लोकतंत्र सुरक्षित और भयमुक्त रह पायेगा। इसके लिए अथक और सतत प्रयत्न करते रहना होगा और अपने आत्मावलोकन से कभी विरत न हों, इसका भी ध्यान रखना होगा।-

प्रभाकर सिंह 20बी/2बी/1, मिन्टो रोडप्रयागराज-211001उत्तर प्रदेश