प्रेस की आजादी

पश्चावलोकन:

भारत में प्रिंटिंग मशीन 1556 में गोआ में आ गया किंतु पहला अखबार 1780 में छपा था। हिंदी का अखबार उदंत मार्तण्ड 1826 में छपा।

किंतु भारत में वेद गहन विमर्श के मांत्रिक यांत्रिक प्रभागों का श्रवण, मस्तिष्क में संचयन, पुनः पाठन व संशोधन कर स्मृतियों,मिमांशाओं,उपनिषदों व अठारह पुराणों में वेद व्यासों द्वारा अद्यतनीकरण कर अर्वाचीन ज्ञान को आज भी संचय कर रखा गया है जो पत्रकारिता का तत्सम रुप है।

 

पत्रकारिता

पत्रकारिता का जन्म जर्नालिज्म से हुआ। जर्नल का अर्थ दैनिक से होता है जिसे आगे चलकर पत्रिका के लिए संबोधित किया जाने लगा।

पत्रकार का कार्य पत्रकारिता है। 

पत्रकारिता में दैनिक जीवन व भूमंडलीय, आकाशीय घटनाओं से संबंधित जानकारियों को संग्रहित कर मूल रुप में जनता के जानकारी में लाने हेतु आलेखन, चित्र, प्रत्यक्ष दर्शी का साक्षात्कार के साथ उस घटना का सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक प्रभाव के साथ व्यक्ति की क्रीया प्रतिक्रियाशील का लेखा जोखा रखा जाता है ताकि ऐसी घटना से एतिहात बचाव की तैयारी या जनता में समझदारी पैदा किया जा सके।

पत्रकारिता का पवित्र उद्देश्य घटना या परिवर्तन का नीर क्षीर विश्लेषण के साथ मानक से विचलन की दूरी या कोण को मापने का नजरिया य दृष्टिकोण को जानना व ब्यवस्था तक सही समय पर पहुँचा देना होता है।

 

*इंटरनेट व प्रेस*

 

आज इंटरनेट की मेघ अभ्र सूचना विश्व को एक कर दिया है। अंतरिक्ष, भूगोलिक घटनाओं को अंतरिक्ष में घूम रहे कृत्रिम उपग्रह के कैमरे व ध्वनि संग्राहक लगभग मूल रुप में पकड़ लेते हैं तथा पृथ्वी पर अपने नियंत्रण एवं विश्लेषण केंद्रों को प्रेषित कर देते हैं जिसके निष्कर्ष की चेतावनी या जानकारी सूचना समाचार माध्यम से विश्व के प्रसारण पटलों तक विद्युतिय गति से पहुँच रहा है जबकि पहले भौतिक माध्यम से महीनों, वर्षों लग जाते थे और तब तक घटना के

कई नये प्रतिरुप आकर नई चुनौती प्रस्तुत करती थीं।

 

पत्रकारिता क्यों?

पत्रकारिता का उद्देश्य समस्या का त्वरित निदान है। 

यदि पीने की पानी,सिचाई जल या उत्पादन का विक्रय बाज़ार की समस्या है तो उस समस्या को संबंधित विभाग या संस्था तक पहुँचाकर समस्या का हल देना व इसकी सफलता गाथा भी समाचार के माध्यम से रखना चाहिए।

आज खोजी पत्रकारिता,प्रहरी पत्रकारिता,पीत पत्रकारिता,तृतीय पृष्ठ पत्रकारिता,खेल पत्रकारिता आदि पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है जिसका कारण पत्रकारिता का व्यावसायिक लक्ष्य प्राप्त करना है। जिन विषयों में पाठक की रुचि है उनपर विशेषांक के माध्यम से सामग्री प्रस्तुत किया जाता है।

पत्रकारिता सेवा नियोजन का एक बहुत बड़ा अवसर क्षेत्र है जो समाचार संकलक, संवाद दाता, कैमरा मैन, साक्षात्कार प्राप्त कर्ता, आंकड़ा विश्लेषक, समाचार वाचक, समाचार पत्र प्रकाशक, वितरक, समाचार एजेंसी, अखबार बांटनेवाला संपादक,टंकक,रेखांकन कार,ध्वनि यंत्रक, कला नियंत्रक, आदि सेवा के माध्यम से जीविकोपार्जन के अवसर प्राप्त होते हैं।

पत्रकारिता के अनेक रुप

पत्रकारिता के कार्य क्षेत्र व उद्देश्य का आधार पर अनेक रुप होते हैं।

पीत पत्रकारिता में समाचार पसंद- नापसंद के आधार पर छापे जाते हैं जो स्वस्थ पत्रकारिता के सिद्धांत के विरुद्ध है।

प्रहरी पत्रकारिता (वाचडाग) में राज्य की नीतियों,विदेश नीतियों में परिवर्तन या क्रियान्वयन पर नजर रखकर जनता व शासन के समक्ष जनता की पसंदगी,नापसंदगी को देश हित के सापेक्ष रखी जाती है।

खेलकूद पत्रकारिता खेलो कूद पढ़ो बढ़ो भारत के नखरे को सार्थक करने के उद्देश्य को लेकर खेल के मैदान व खिलाड़ी के साथ खड़ा दिखता है।

समाचार का तीसरा पन्ना जिसमें मनोरंजन,कला,ज्ञान-विज्ञान, लेख, व्यक्ति परिचय, समसामयिक जानकारियों के माध्यम से पाठक के एक विशेष वर्ग के लिए जानकारियाँ रखी जाती हैं।

धर्म जाति वर्ग भेद सामाजिक ताना बाना को प्रभावित करने वाला लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का जागते रहना अत्यावश्यक है अतः पत्रकारिता को किसी सरकार का या राजनीतिक दल के लिए नहीं बल्कि निष्पक्ष होकर सत्य को समय से उद्घाटित करना ही पत्रकारिता को चौथा स्तंभ बनाता है।

पत्रकारिता का महत्व:

आज विश्व में पश्च करोनाकाल में आर्थिक मंदी से निजात पाने सभी देश अपनी विदेश नीति, सैन्य नीति व वाणिज्यिक नीति में परिवर्तन व गुटीय गठबंधन कर विकास की गाड़ी को पटरी पर लाने में लगी है, तब पत्रकारिता की भूमिका विश्व के सीमावर्ती देशों व दूरस्थ विकसित देशों की विदेश नीति पर नजर रखकर देश की व्यवस्था,सरकार व जनता को सतर्क व अद्यतन रखना आवश्यक है।

नाटो बनाम अन्य शक्तियों के बीच शक्ति संतुलन, पुराने हथियारबंद को आधुनिक हथियारों से प्रतिस्थापित करने के उद्देश्य से चलने वाले युद्ध यथा युक्रेन व रूस का सीधा व नाटो रूस के बीच अप्रत्यक्ष युद्ध अंततः विश्व के सभी देशों को दो खेमों में बांटना शुरु कर दिया है। ऐसे समय में पत्रकारिता का राष्ट्रीय दायित्व अहम हो जाता है कि इन देशों में घटने वाली घटनाओं का हमारे देश के हित पर क्या प्रभाव पड़ेगा और तदनुरुप हमारी सरकार की नीति में किन बातों पर विशेष ध्यान देना होगा,पर एक स्पष्ट संकेत के साथ बहस कराना व सारांश को सरकार के सामने रखना होगा।

प्रेस की आजादी:

भारत की आजादी की लड़ाई का १८५७ से लेकर १९४७ तक का इतिहास मोटे रुप में सभी को पता है, १९१४ से १९१९ व १९३९से १९४५ के दो विश्वयुद्ध भी आजादी छीनने व आजादी पाने के लिए हुआ था।

इन लड़ाइयों में ग्राउण्ड जीरो घटनास्थल से सीधे जानकारी देने वाली मीडिया तबभी प्रकारान्तर से कार्य कर रही थी और आज भी युक्रेन युद्ध की जानकारी मिल रही है किंतु किसी देश की संप्रभूता,राष्ट्रीय नीति, गोपनीय कार्य योजनाओं,सैन्य शक्ति व सुरक्षी उपायों के किस सीमा तक मीडिया की नजर होनी चाहिए तथा किस सीमा तक जानकारियाँ विश्व की जनता तक पहुँचने चाहिए पर प्रिंट मिडिया अर्थात प्रेस व सरकार के बीच मांग व अनुमति की लड़ाई चलती रहती है।

आजादी का मतलब आकाश में चिड़िया की आजादी को उदाहरण ले लें तो चिड़िया अपने दाना-पानी, घोसला के निमित्त उड़ने की आजादी चाहते है। प्रिंट मीडिया या आम आदमी भी कुछ ऐसी ही आजादी के अलावा उस आकाश,उस खेत, उस वृक्ष का चित्र भी अपने उड़ान के साथ दिखाना चाहता है जो तब अधिकार व कर्तव्य के बीच असंतुलन की स्थिति निर्मित कर देती है प्रिंट व नागरिक अधिकार को पारदर्शिता पूर्ण ढ़ंग से उपभोग करना चाहते हैं और सरकार प्रिंट मीडिया या प्रेस व जनता को समाज व राष्ट्र के प्रति सम्यक कर्तव्य निर्वहन पर बल देती है व तदनुसार संविधान के दायरे में इस कर्तव्य को प्रभावी बनाने के लिए स्मरण पत्र, विज्ञप्ति,आदेश पत्र, परिपत्र जारी करती है जिसे प्रिंट मीडिया आजादी पर प्रतिबंध मान कर विरोध करती है।

सरकार चाहते है की देश की नीति, आंतरिक व्यवस्था,राजनीतिक समाचारों आदि पर सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारियों को प्रिंट मीडिया समाचार बनाये जबकि प्रेस तह तक जाने की स्वतंत्रता की मांग करती रही है।

प्रेस की आजादी का असर जुलियस असान्जे की सनसनीखेज आर्थिक भ्रष्टाचार संलिप्तता का समाचार जिसके कारण अनेक देशों के राजनेताओं की छवि धूमिल हो गई व सरकारें भी गिरीं।

यह घटना बताता है कि प्रेस को केवल वर्गीकृत समाचार ही छापने देने के लिए बाध्य करने से पर्दे के पीछे चल रहे आर्थिक अपराध,राष्ट्र द्रोह जैसे खतरनाक गतिविधियां,लूट का हिस्सा का बंदरबाट का तरीका न बन जाये और प्रेस भी अपना हिस्सा लेकर आँखें बंद कर ले तो फिर उस देश में अराजकता को रोकना ईश्वर के बूते से भी बाहर की बात हो जायेगी।

आज प्रेस स्वतंत्र संस्था नहीं है अथवा नो लास नो प्राफिट अथवा लाभालाभ रहित स्थिति वाली स्वायत्त संस्था नहीं है, सभी प्रेस किसी मालिक की संपत्ति हैं तथा वाणिज्यिक सरोकार के साथ अधिकाधिक आय करने के उद्देश्य को लेकर कार्य कर रही हैं। कई बार प्रेस पक्षपात पूर्ण समाचार या द्वंद्वात्मक खंडन मंडन करता नजर आता है, जिससे जनता के मन में प्रेस के प्रति अविश्वास पैदा होने लगता है।

प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया या समाचार या वार्ता जैसी केंद्रीय संस्थायें कितनी स्वायत्त हैं या कितनी वाचारवाद से ग्रस्त हैं यह सरकार के मनोनयन के लिए बनाये गये बायोडाटा या परिचय पत्र की विषय वस्तु अध्ययन से पता चल सकेगा।

आज वाम पंथ, मुख्य धारा व चरम पंथ के बीच सामंजस्य रखने का कार्य प्रेस बखूबी कर सकता है, निष्पक्ष, पारदर्शी व त्वरित ग्राउण्ड जीरो संसूचना के माध्यम से ताकि घटना केसतत्य को जानकर उचित निरोध व इलाज किया जा सके।

आजादी शब्द डफली के साथ कानों में गूंजती है “लेकर रहेंगे…आजादी…

और फिर जे एन यू के कैम्पस में खड़े वामपंथ के दिशाहीन चेहरे दिखने लगते हैं जो अमेरिका का हिप्पियों की तरह लगते हैं जो अच्छे घरों के होकर भी स्ट्रीट डाग की तरह अवारापन को स्वतंत्रता का आनन्द मानते हैं और कुछ भी खाते,पीते,पहने,बोलते व करते हैं।

प्रेस को चौथे आधार स्तंभ के रुप में शक्तिशाली बनाना जरुरी है ताकि वह एक वाचडाग या निगरानी रखने वाला जिम्मेदार प्रहरी की भूमिका निभा सके। प्रेस स्वतंत्र व जागृत प्रहरी के रुप में कार्य कर सकेगी तभी सरकार की तानाशाह गतिविधि नियंत्रित होगी व आम जनता में एक विश्वास पूर्ण उत्साह को देखकर सरकार व प्रेस की निष्पक्षता का मूल्यांकन किया जा सकेगा।

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अंजनीकुमार’सुधाकर’

बिलासपुर, छत्तीसगढ़

(9425575490)