अब देश के वकीलों की कमर तोड़ेगी मोदी सरकार, नकेल कसने पर आमादा

(एडवोकेट एक्ट 1961 नए संशोधन बिल 2025 पर बवाल)

 

डॉक्टर सैय्यद खालिद कैस एडवोकेट

अध्यक्ष राजस्व अधिवक्ता कल्याण परिषद म.प्र.

 

देश में फैली अफरा-तफरी के बीच केंद्र सरकार अब देश के वकीलों पर नकेल कसने के मूड में है। केंद्र सरकार 1961 के एडवोकेट एक्ट में बदलाव करने के लिए अमेंडमेंट बिल लाने की तैयारी में है। इस बिल के माध्यम से सरकार जहां एक ओर वकीलों की सर्वोच्च संस्था बार कौंसिल ऑफ इंडिया को अपने नियंत्रण में करना चाह रही हैं वहीं वकीलों के लिए बने कानून में परिवर्तन कर उन पर लगाम लगाने कए मूड में है। बिल का फाइनल ड्राफ्ट सामने आने पर देशभर के वकील बिल के विरोध में खड़े हो गए हैं।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री मनन मिश्रा ने विरोध स्वरूप अपने बयान में कहा कि नए बिल के प्रावधान न केवल वकीलों की स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं, बल्कि वकीलों से उनके विरोध का अधिकार भी छीनते हैं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के इस बयान के बाद कि सरकार अगर संशोधन वापस नहीं लेती है तो देश भर के वकील विरोध स्वरूप अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर सकते हैं। इस बात ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार इस बिल के माध्यम से अब वकीलों पर नकेल कसने वाली है। एडवोकेट एक्ट में बदलाव करने के लिए लाए जा रहे अमेंडमेंट बिल के कुछ ऐसे बिंदु हैं जिनका असर वकीलों पर सीधे तौर पर पड़ेगा।

एडवोकेट एक्ट 1961 के अनुसार कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस करने वालों को ही कानूनी व्यवसायी माना जाता है। जबकि कानूनी व्यवसायी की परिभाषा नए बिल की धारा 2 व्यापक बनेगी। इसमें कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस के साथ ही कार्पोरेट वकीलों, इन-हाउस परामर्शदाताओं, वैधानिक निकायों और विदेशी कानूनी फर्मों में कानूनी काम में लगे लोगों को भी कानूनी व्यवसायी माना जाएगा। वकीलों का मानना है कि इस परिभाषा की व्यापकता के कारण उन लोगों को प्राथमिकता मिलेगी जो नियमित प्रैक्टिस नहीं करते ।

सरकार एक्ट में नए संशोधन के द्वारा बार कौंसिल ऑफ इंडिया पर भी निगरानी चाहती है। वर्तमान कानून के अनुसार बार कौंसिल ऑफ इंडिया BCI के सदस्य संपूर्ण भारत की राज्य स्तरीय बार काउंसिल द्वारा चुने जाते हैं। लेकिन सरकार वकीलों पर एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 4 में संशोधन कर सरकारी निगरानी करना चाहती है।नए बिल के माध्यम से सरकार को बार कौंसिल ऑफ इंडिया के निर्वाचित सदस्यों के साथ 3 सदस्यों को नामित करने का अधिकार मिल जाएगा। इस संशोधन के द्वारा केंद्र कानून के प्रावधानों को लागू करने में BCI को निर्देश दे सकेगी।

मालूम हो कि सरकार ने एडवोकेट एक्ट 1961 के नए बिल में संशोधन कर धारा 33A जोड़ी है। वर्तमान कानून के अनुसार वकील एक साथ कई बार एसोसिएशन का सदस्य हो सकते हैं। तथा सभी के चुनाव में वोट कर सकते हैं। लेकिन सरकार यहां भी हस्तक्षेप कर  “एक बार-एक वोट” की नीति लाना चाह रही है। बिल में जोड़ी गई नई धारा 33A के मुताबिक अदालतों, ट्रिब्यूनल और अन्य प्राधिकरणों में वकालत करने वाले सभी वकीलों को उस बार एसोसिएशन में पंजीकरण कराना होगा, जहां पर वे वकालत की प्रैक्टिस करते हैं। शहर बदलने पर वकील को 30 दिन के अंदर बार एसोसिएशन को बताना होगा। कोई वकील एक से ज्यादा बार एसोसिएशन का सदस्य नहीं हो सकेगा। वकील को केवल एक ही बार एसोसिएशन में मतदान करने की अनुमति होगी।

इसी प्रकार नए बिल की धारा 35 में वकीलों पर 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है। इस अनुचित जुर्माने का प्रावधान का विरोध हो रहा है। संशोधित बिल की धारा 35 के प्रावधान अनुसार यह जुर्माना वकीलों के पेशेवर आचरण को लेकर है, लेकिन इसे लागू करने का तरीका पक्षपातपूर्ण हो सकता है। इससे वकीलों पर अनावश्यक दबाव बनेगा और उनकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी। वकीलों के खिलाफ आई झूठी शिकायतों पर जुर्माना प्रावधान करने की मंशा रखने वाली सरकार वकीलों के लिए कोई सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं कर रही।जबकि इस नए बिल की धारा 35 में अगर कोई शिकायत झूठी या फ़िजूल पाई जाती है, तो शिकायतकर्ता पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। लेकिन शिकायत झूठी साबित होने से पूर्व वकील के साथ हुए कुठाराघात, व अपमान की भरपाई कैसे होगी। वकीलों को सुरक्षा प्रदान किए बिना उनके विरुद्ध झूठी शिकायतों पर कार्यवाही यह एकतरफा और अन्यायपूर्ण है।

नए बिल की धारा 35A वकील या वकीलों के संगठन को कोर्ट का बहिष्कार करने, हड़ताल करने या वर्क सस्पेंड करने से रोकती है। यह प्रावधान वकीलों के संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 19 – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का हनन करता है। वकीलों को अपनी मांगों और समस्याओं को उठाने के लिए हड़ताल या बहिष्कार एक महत्वपूर्ण हथियार होता है। इसे छीन लेना उनकी आवाज़ को दबाने जैसा है।वकील या वकीलों के संगठन को कोर्ट का बहिष्कार करने, हड़ताल करने या वर्क सस्पेंड करने से रोकती है। इसका उल्लंघन वकालत के पेशे का मिसकंडक्ट माना जाएगा और इसके लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकेगी। जबकि मौजूदा व्यवस्था के अनुसार एडवोकेट एक्ट 1961 के अनुसार अब तक वकीलों या वकील संगठन द्वारा हड़ताल करने पर कोई रोक नहीं थी लेकिन इसको व्यवसायिक कदाचरण अर्थात प्रोफेशनल मिसकंडक्ट माना जाता है।धारा 35 A वकील या वकीलों के संगठन को कोर्ट का बहिष्कार करने, हड़ताल करने या वर्क सस्पेंड करने से रोकती है।इसका उल्लंघन वकालत के पेशे का मिसकंडक्ट माना जाएगा और इसके लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकेगी। नए बिल के अनुसार व्यवसायिक कदाचरण अर्थात प्रोफेशनल मिसकंडक्ट की वजह से किसी का नुकसान होता है तो बिल की धारा 45B के तहत प्रोफेशनल मिसकंडक्ट के कारण वकील के खिलाफ कार्रवाई के लिए बार कौंसिल ऑफ इंडिया BCI में शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी। पुराने एक्ट अनुसार वकील द्वारा अपने मुवक्किल को धोखा देना ही प्रोफेशनल मिसकंडक्ट अर्थात व्यवसायिक कदाचरण माना जाता है। इसकी शिकायत बार कौंसिल ऑफ इंडिया BCI से होती है।

नए बिल की धारा 36 में वकीलों को तुरंत निलंबित करने का अधिकार का प्रावधान किया गया है। नए बिल के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी वकील को तुरंत निलंबित कर सकती है । यह प्रावधान वकीलों के खिलाफ शिकायतों के दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है। बिना उचित जांच के किसी को निलंबित करना अन्यायपूर्ण है। नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत अनुसार आरोपित व्यक्ति को अपने पक्ष समर्थन में अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान किया जाता है लेकिन धारा 36 नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का अतिलंघन करता है।

इस बिल के माध्यम से सरकार न्याय प्रणाली में वकीलों की भूमिका को कमजोर करना चाहती है।वकील न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके बिना न्याय प्रक्रिया अधूरी है। अधिनियम के नए संशोधन के तहत सरकार द्वारा वकीलों को अनुशासनात्मक कार्यवाही का डर दिखाकर उनकी स्वतंत्रता को कमजोर किया जा रहा है। यह न्याय प्रणाली के लिए खतरनाक है। सरकार के इस हस्तक्षेप को वकील समुदाय अपनी आजादी ओर मतदान के अधिकार पर केंद्र सरकार का दखल मान रहे हैं।इस संशोधन के माध्यम से सरकार वकीलों पर नकेल कसने वाली है।

केंद्र सरकार द्वारा एडवोकेट एक्ट 1961 में संशोधन के नाम पर लाए जा रहे नए बिल के माध्यम से देश के लाखों वकीलों की आजादी और उनका प्रतिनिधित्व करने वाली संस्थाओं के कार्यों पर अपना नियंत्रण करना चाह रही है। जिसका संपूर्ण देश के वकीलों द्वारा खुलकर विरोध किया जा रहा है जो निकट भविष्य में विकराल रूप धारण करेगा और वकील संगठनो के बैनर तले देश के लाखों वकील अपनी आजादी पर हुए आघात के खिलाफ सड़कों पर लामबंद होंगे इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।