228 पत्रकारों को बनाया गया निशाना, 13 मारे गए, यूपी-महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा प्रताड़ित हुए जर्नलिस्ट: रिपोर्ट
RRAG की स्टडी कहती है कि जिन 13 पत्रकारों की मौत हुई थी, उनमें से 12 की हत्या नॉन स्टेट एक्टर्स/अपराधियों द्वारा की गई. जबकि एक पत्रकार की हत्या 2 पुलिसकर्मियों द्वारा नॉन स्टेट एक्टर्स के साथ मिलकर की
साल 2020 में 228 पत्रकारों को बनाया गया निशाना
13 पत्रकार मारे गए, पत्रकारों के खिलाफ 64 FIR
राइट एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप की रिपोर्ट
साल 2020 में 228 पत्रकारों को भारत में निशाना बनाए गए. इनमें से 114 पत्रकार ऐसे थे जिन्हें नॉन स्टेट एक्टर ने प्रताड़ित किया. नॉन स्टेट एक्टर में मॉब, अज्ञात असामाजिक तत्व, राजनीतिक/संगठनों के समर्थक शामिल हैं. जबकि 112 पत्रकारों और 2 मीडिया हाउस सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रताड़ित किए गए हैं. जिन राज्यों में पत्रकारों को सबसे ज्यादा प्रताड़ना झेलनी पड़ी है, उनमें पहले पायदान पर है उत्तर प्रदेश (37) और दूसरे पर है महाराष्ट्र (22).
ये दावा राइट एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (RRAG) नाम की एक संस्था के अध्ययन में किया गया है. इस संगठन ने India Press Freedom Report 2020 नाम से पत्रकारों पर सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों, संस्थाओं, व्यक्तियों द्वारा प्रत्यक्ष और परोक्ष कार्रवाई की एक रिपोर्ट तैयार की है.
साल 2020 में मारे गए 13 पत्रकार
RRAG के इस अध्ययन के अनुसार साल 2020 में 13 पत्रकार मारे गए. इनमें सबसे ज्यादा 6 पत्रकार यूपी में मारे गए. इसके बाद असम और मध्य प्रदेश में 2-2 पत्रकार मारे गए.
RRAG की स्टडी कहती है कि जिन 13 पत्रकारों की मौत हुई थी. उनमें से 12 की हत्या नॉन स्टेट एक्टर्स/अपराधियों द्वारा की गई. जबकि एक पत्रकार की हत्या 2 पुलिसकर्मियों द्वारा नॉन स्टेट एक्टर्स के साथ मिलकर की गई. एक चिंताजनक बात ये रही कि हत्या से पहले इन पत्रकारों ने स्थानीय पुलिस को जान के खतरे की सूचना दी थी लेकिन पुलिस इन्हें सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रही.
101 पत्रकारों पर शारीरिक और ऑनलाइन हमला
RRAG की रिपोर्ट कहती है कि 101 पत्रकार शारीरिक और ऑनलाइन हमले के शिकार हुए. 42 पत्रकारों को पुलिस के साथ दूसरे लोक अधिकारियों ने पीटा. 3 पत्रकारों को कथित रूप से सेना के जवानों ने पीटा. 14 पत्रकारों को कथित तौर पर राजनीतिक दलों के समर्थकों/सदस्यों ने निशाना बनाया.
37 पत्रकार गिरफ्तार किए गए
साल 2020 में 37 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. RRAG के अनुसार महाराष्ट्र और तमिलनाडु में 5-5 पत्रकार गिरफ्तार किए गए या फिर हिरासत में लिए गए. यूपी और तेलंगाना में ये आंकड़ा 4 का रहा जबकि जम्मू-कश्मीर में 3 पत्रकारों पर गिरफ्तार की कार्रवाई हुई. पश्चिम बंगाल और गुजरात में 2 पत्रकार गिरफ्तार किए गए.
पत्रकारों पर दर्ज की गईं 64 FIR
इस दौरान पत्रकारों पर 64 FIR दर्ज की गईं. ये FIR पत्रकारों द्वारा रिपोर्टिंग करते समय उनके मौलिक अधिकार अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करते हुए उनके खिलाफ दर्ज की गईं.
कुछ पत्रकारों के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन करने पर केस दर्ज किए गए जो सिस्टम के भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे. इसके अलावा साम्प्रदायिक दंगों की रिपोर्टिंग करने पर भी कई पत्रकारों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रतिक्रिया देने पर भी पत्रकारों के खिलाफ केस दर्ज हुए.।
दुनिया भर में पत्रकारों की असुरक्षा के आंकड़े काफी चिंताजनक हैं। ‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स‘ के अनुसार, 1992 से अब तक 1400 से अधिक पत्रकारों की हत्या कर दी गई। उनमें से 890 से अधिक पत्रकारों के किसी भी हत्यारे को कभी न्याय के कटघरे में लाया तक नहीं गया। दोषियों पर कार्रवाई नहीं किया जाना उन्हें ‘दंड से मुक्ति‘ देने के समान है। सौ खून माफ? यानी हत्यारों को ‘इम्प्यूनिटी‘ मिल गई। आज भी दुनिया भर में 274 से अधिक पत्रकार जेल में बंद हैं। यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। ताजा आंकड़े पत्रकारों पर हमलों और हत्याओं के नए रिकॉर्ड बना रहे हैं।
मैरी कॉल्विन और डेनियल पर्ल जैसे हाई प्रोफाइल पत्रकार भी हत्या का शिकार हुए हैं। लेकिन मरने वालों में अधिकांश पत्रकार स्थानीय मीडिया से जुड़े हैं। ऐसे आंकड़े असल सच्चाई की एक झलक मात्र हैं। पत्रकारों की पिटाई, अपहरण, कारावास और धमकियों की संख्या काफी अधिक है। उन्हें चुप कराने की कोशिशें भी बड़ी संख्या में हो रही हैं।
पत्रकारों को ख़तरा विभिन्न क़िस्म की ताक़तों से है। इनमें ड्रग माफिया, आतंकी समूह, निरंकुश सरकारें, जातीय शत्रु, उन्मादी और अराजक तत्व इत्यादि शामिल हैं।