मुझे याद है 2016से 2019तक राजधानी सहित सम्पूर्ण प्रदेश में पत्रकार उत्पीड़न , भूमाफिया , रेत माफियाओं और अपराधियों के हाथों शिकार पत्रकारों के मामले में जांच की माँग , ज्ञापन देने या सरकार से पत्रकार सुरक्षा क़ानून की माँग संबन्धित समाचारों को प्रमुखतः से प्रकाशित नही किया गया । प्रबन्धन की पालिसी का हवाला देकर खबरों को दबाया गया । यहाँ तक के कई मामलो में पीड़ित पत्रकार को समाचारपत्र , पत्रिकाओं में पत्रकार लिखने तक से गुरेज किया गया । यही सब कारण रहे जो सरकार , पुलिस और माफियाओं ने पत्रकारों को सताया , दबाया और कुचला है , और पिछले कई दशक से यह सब निरंतर चल रहा है ।
आज़ादी के 70साल से अधिक समय गुज़र जाने के बावजूद केंद्र या राज्य सरकार द्वारा पत्रकारों की सुरक्षा एवं कल्याण के लिये “पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण कानून “नही बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है । वर्तमान समय में देश सहित समस्त प्रदेशो में पत्रकार सुरक्षा क़ानून लागू होना वर्तमान समय की आवश्यकता होगई है ।
@सैयद ख़ालिद कैस अध्यक्ष प्रेस कौंसिल ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स
भोपाल । राजधानी मे गत दिनों एक दैनिक समाचार पत्र के ब्यूरो हेड पर हुऐ हमले पर मुख्यमन्त्री शिवराज सिँह चौहान , पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित , गृह मन्त्री नरोत्तम मिश्रा आदि ने अपने ट्वीटर पर घटना की निंदा सहित स्वास्थ्य कुशल होने की कामना के संदेश लिखे । पत्रकारिता जगत में भी घटना के बाद से ही काफ़ी गहमागहमी भरा माहौल देखने को मिला । किसी ने फेसबुक पर तो किसी ने व्हाट्सएप पर इस घटना की निंदा और पत्रकार सुरक्षा क़ानून लागू होने पर बल दिया । निसंदेह वरिष्ठ पत्रकार के साथ घटित घटना निंदनीय है और साथ ही अपराधियों के बढ़ते हौसलों और पुलिस प्रशासन का पत्रकारों के प्रति नकारात्मक आचरण भी इस बात को प्रमाणित करता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के प्रहरियों की सुरक्षा के प्रति सरकारों की लापरवाही चिंता का विषय है । परन्तु राजधानी सहित मध्यप्रदेश या यह कहो सम्पूर्ण देश में यह कोई पहली या आखिरी घटना नही है जिसमें पत्रकार पर हमला होने के बाद पत्रकार सुरक्षा की महत्ता महसूस हुई हो । हर वर्ष लगभग 100-125 ऐसी घटनाऐं प्रदेश भर में घटित होती हैं , कभी किसी पत्रकार की हत्या हो जाती है तो कभी हत्या का प्रयास होता है । कभी किसी पत्रकार पर झूठे मुकदमे लग जाते हैं तो कभी किसी की शिकायत पर पुलिस मुकदमा दर्ज नही करती । मतलब पत्रकार साल भर कभी भूमाफियाओं , रेत माफियाओं , अपराधियों तो कभी पुलिस के टारगेट पर रहते हैं , हमेशा उनकी , उनके परिवार की जानमाल का ख़तरा बना रहता है , परन्तु सरकार सब कुछ जानने के बावजूद इन कलमकारों की सुरक्षा या उनके कल्याण के प्रति गंभीरता नही दिखाती । घटना के बाद जिस प्रकार वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री ने घटना पर चिंता जताई वह हास्यास्पद है । क्यूंकि 15साल की भाजपा सरकार और 15माह की कमलनाथ सरकार ने प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा क़ानून लागू नही किया । यहाँ एक बात और ख़ास रही वह थी कमलनाथ सरकार का वचन पत्र । 2018के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने अपने वचन पत्र में पत्रकार सुरक्षा क़ानून लागू करने का वादा भी किया था और 15माह की कमलनाथ सरकार में खुद मुख्यमन्त्री कमलनाथ और जनसंपर्क मन्त्री पीसी शर्मा लगातार पत्रकार सुरक्षा क़ानून लागू करने पर बल देते रहे मगर लागू नही करा सके। वहीं यदि शिवराज सरकार की बात करें तो घोषणा वीर शिवराज जी कभी कभी इसकी घोषणा भी कर दिया करते रहे मगर तात्कालीन जनसंपर्क मन्त्री और वर्तमान गृह मन्त्री नरोत्तम मिश्रा ने कभी भी पत्रकार सुरक्षा क़ानून की हिमायत नही की और यहाँ तक कहा कि “पत्रकार सुरक्षा क़ानून “हमारे एजेंडा में नही है , और यही स्थिति अभी भी विद्यमान है । घटना निंदनीय थी तथा उसकी जितनी निंदा की जाऐ कम होगी , मगर क्या इस तरह की घटना के लिये हम पत्रकार विशेषकर वह वरिष्ठ पत्रकार जो कारपोरेट मिडिया जगत के साथ पत्रकारिता करते हैं और अधीनस्थ पत्रकार को केवल कर्मचारी मात्र मानते हैं भी जिम्मेदार हैं । क्योंकि पत्रकार सुरक्षा या पत्रकार के साथ घटित घटना को मिडिया विशेषकर प्रिंट मिडिया में जगह नही देना और पत्रकार की समस्या को प्रकाशित करने से गुरेज करना कारपोरेट मीडिया घराने की डिप्लोमेसी होती है ।नतीजतन पत्रकार के साथ हुऐ हादसे या तो प्रमुखतः नही पाते या जगह ही नही पाते ।