भोपाल।किसान आंदोलन से घबराई केंद्र सरकार अब पत्रकारों को दबाने पर आमादा है।क्योंकि पत्रकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग जो केवल सरकार की स्तुति को ही पत्रकारिता धर्म मानता है ने किसानों को उग्रवादी, खालिस्तानी और न जाने किस किस नामो से प्रचारित किया है नही चाहता की सच्चाई सामने आये।वही निष्पक्ष पत्रकारिता के अलम्बरदार दूसरी और सच सामने ला रहे हैं जो सरकार की आँखों में चुभ रहे हैं नतीजतन सरकार के निशाने पर आरहे हैं और सरकार दमनकारी नीति अपनाकर उनकी आवाज़ को दबाने के उद्देश्य से उन पर झूठे मुकदमे दर्ज कर रही है।

ताजा मामला स्वतंत्र पत्रकार और कारवां पत्रिकाके लिए लिखने वाले मनदीप पुनिया और एक अन्य पत्रकार धर्मेंद्र सिंह को शनिवार को हिरासत में लेने का है जिसमे धर्मेंद्र सिंह को रविवार तड़के इस शर्त पर रिहा कर दिया गया कि अब चुप रहेगा, वहीं बताया जा रहा है कि पुनिया को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।

मालुम हो कि अभी कुछ दिन पूर्व ही योजनाबद्ध तरीके से वरिष्ठ कॉंग्रेस सांसद एवं कांग्रेस नेता शशि थरूर, इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई, नेशनल हेराल्ड के सीनियर कंसल्टिंग एडिटर मृणाल पांडे, कौमी आवाज के संपादक जफर आगा, कारवां पत्रिका के संपादक और संस्थापक परेश नाथ, इसके संपादक अनंत नाथ और कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस और एक अज्ञात शख्स के खिलाफ दिल्ली और भाजपा शासित कुछ राज्यों में भी ताबड़तोड़ तरीके से एफआईआर दर्ज की गई हैं। मालुम हो कि सभी पर किसानों के मामले में ही गाज गिरी है।

गोरतलब हो कि लॉक डाउन काल में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अयोध्या मामलें की खबर चलाने से रुष्ट उनके सहायक द्वारा द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ  एफआईआर दर्ज करवाई थी आज रविवार को फिर उत्तर प्रदेश पुलिस ने द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ भी अलग से एफआईआर दर्ज की।मालूम हो कि यूपी पुलिस ने उत्तर प्रदेश की रामपुर पुलिस ने सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ एक ट्वीट को लेकर एफआईआर दर्ज की है. इस ट्वीट में उन्होंने उक्त प्रदर्शनकारी की मौत को लेकर उनके परिवार के दावे से संबंधित खबर को ट्वीट किया था।साफ़ ज़ाहिर है केंद्र सरकार किसानो की आड़ में पत्रकारों को निशान साध रही है। देश भर के कई मीडिया संगठनों ने इन पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज कए जाने की आलोचना की है और इस स्थिति को अघोषित आपातकाल बताया है।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा का कहना है, ‘ये आरोप केवल पत्रकारों को डराने या प्रताड़ित करने के लिए नहीं हैं, बल्कि पेशेवरों को आतंकित करने के लिए भी हैं, ताकि वे अपना काम करने से डरें।
प्रेस क्लब ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष सैयद ख़ालिद क़ैस ने देश भर में पत्रकारों के खिलाफ  एफआईआर दर्ज किये जाने की निंदा करते हुए इसको निष्पक्ष पत्रकारिता के साथ कुठाराघात निरूपित किया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र पत्रकार मंदीप पुनिया को गिरफ्तार करना दुर्भाग्यपूर्ण है , यह लोकतंत्र एवं अभिव्यक्ति की आजादी की हत्या करने के समान है ।